देहरादून: उत्तराखंड में सुशासन और पारदर्शिता की दिशा में बीते वर्षों में जो परिवर्तन देखने को मिले हैं, वे न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से उल्लेखनीय हैं, बल्कि जनता के विश्वास को पुनर्स्थापित करने वाले भी हैं. राज्य सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनाई गई जीरो टॉलरेंस नीति केवल एक औपचारिक घोषणा नहीं रही, बल्कि इसे व्यवहार में उतारते हुए ठोस कदम उठाए गए हैं. यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तराखंड में अब भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक कदम: कोई रियायत नहीं
उत्तराखंड सरकार ने शासन व्यवस्था को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने के लिए उन क्षेत्रों में साहसिक फैसले लिए हैं जहां वर्षों से अनियमितताएं चली आ रही थीं. विशेषकर भर्ती घोटालों, परीक्षा पेपर लीक, और नियुक्तियों में धांधली जैसे मामलों में सरकार ने बिना किसी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव के त्वरित कार्रवाई की.
UKSSSC भर्ती घोटाले, पीईटी परीक्षा पेपर लीक, और उच्च शिक्षा में अनियमित नियुक्तियों जैसी घटनाओं में दोषियों को न केवल निलंबित किया गया, बल्कि जांच एसटीएफ को सौंपकर कड़ी सजा सुनिश्चित की गई. यह पहली बार देखा गया कि प्रभावशाली या रसूखदार लोग भी कार्रवाई से बच नहीं पाए. इससे यह स्पष्ट संकेत गया कि उत्तराखंड सरकार अब किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है.
तकनीक से पारदर्शिता की ओर
सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई से ही नहीं, उत्तराखंड सरकार ने भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार करने के लिए व्यवस्थागत पारदर्शिता को भी अपनी नीति का हिस्सा बनाया है. तकनीक के उपयोग ने सरकारी प्रक्रिया को अधिक सहज, पारदर्शी और जवाबदेह बनाया है.
- e-Governance प्रणाली के अंतर्गत अधिकांश विभागों को डिजिटल किया गया है.
- ऑनलाइन ट्रांसफर पोर्टल ने स्थानांतरण प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाया.
- CM Helpline 1905 के माध्यम से नागरिकों की समस्याओं को सीधे दर्ज कर उन्हें प्राथमिकता पर सुलझाया जा रहा है.
- डिजिटल फाइल ट्रैकिंग सिस्टम से सरकारी कामकाज की निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित हुई है.
इन नवाचारों के कारण अब नागरिकों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं काटने पड़ते और बिचौलियों की भूमिका लगभग समाप्त हो गई है.
पारदर्शी और निष्पक्ष भर्ती प्रक्रिया
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का सबसे बड़ा असर उत्तराखंड की युवा पीढ़ी पर पड़ा है. सरकार ने भर्ती प्रक्रियाओं को निष्पक्ष और मेरिट आधारित बनाने के लिए महत्वपूर्ण सुधार किए हैं:
- उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की कार्यप्रणाली में सुधार
- नकल विरोधी कानून का प्रभावी कार्यान्वयन
- परीक्षा केंद्रों की निगरानी प्रणाली को सशक्त करना
- परीक्षा गोपनीयता बनाए रखने हेतु जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करना
इन प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि अब युवाओं को यह भरोसा हुआ है कि उनकी मेहनत और प्रतिभा के साथ न्याय होगा. इसके साथ ही राज्य में भर्ती घोटालों के विरुद्ध जागरूकता भी बढ़ी है.
जनसंवाद और जवाबदेही का मजबूत तंत्र
सुशासन का मूल आधार है – जनता की भागीदारी और संवाद. उत्तराखंड सरकार ने जनसंवाद को अपनी कार्यप्रणाली का अभिन्न अंग बनाया है.
- जनमंच, जनसंवाद शिविर, और मुख्यमंत्री दरबार जैसे माध्यमों से आम नागरिकों की समस्याएं सीधे सुनी जा रही हैं.
- जनता की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित की जा रही है, जिससे नागरिकों में शासन के प्रति विश्वास बढ़ा है.
इस प्रकार, सरकार और जनता के बीच का संवाद अब एकतरफा नहीं, बल्कि सक्रिय और पारस्परिक हो गया है.
पुलिस और प्रशासनिक तंत्र में पारदर्शिता
भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने पुलिस और प्रशासनिक तंत्र में भी कठोर सुधार किए हैं.
• भ्रष्ट अधिकारियों के निलंबन और स्थानांतरण में पारदर्शिता अपनाई गई.
• विभागीय जांच प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाया गया.
• वहीं दूसरी ओर, ईमानदार और कुशल अधिकारियों को प्रोत्साहित करने की नीति भी अपनाई गई, जिससे एक सकारात्मक और उत्तरदायी प्रशासनिक संस्कृति का विकास हुआ है.
यह बदलाव यह स्पष्ट करते हैं कि उत्तराखंड सरकार केवल दोषियों को सजा नहीं देती, बल्कि योग्य अधिकारियों को सम्मान भी देती है.
जनता का बढ़ता विश्वास
विभिन्न स्वतंत्र सर्वेक्षणों और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, उत्तराखंड सरकार की भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त नीति ने जनता के बीच एक नई उम्मीद जगाई है.
• युवा वर्ग को निष्पक्ष अवसर मिलने की उम्मीद जगी है.
• महिलाओं और सामान्य नागरिकों में शासन व्यवस्था के प्रति विश्वास बढ़ा है.
• नागरिक अब यह महसूस कर रहे हैं कि उनकी शिकायतें सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि उस पर कार्रवाई भी होती है.