how dalai lama be chosen: 14वें दलाई लामा छह जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे। जिसके बाद एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि उनका उत्तराधिकारी कौन बनेगा? ये सवाल इसलिए क्योंकि मौजूदा दलाई लामा ने खुद अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है कि वो जब 90 साल के होंगे तब अपने उत्तराधिकारी के बारे में बताएंगे।
हालांकि जितना पेचीदा ये सवाल हमे लग रहा है तिब्बती धर्म के मुताबिक इसका जवाब साफ है। लेकिन इसमें हर बार की तरह चीन दखल दे रहा है। इस धार्मिक प्रक्रिया में वो अड़ंगा डालने की कोशिश कर रहा है। जिसके चलते 300 के करीब धार्मिक नेता और बड़ी-बड़ी हस्तियां हिमाचल प्रदेश के धर्मशाल के मैक्लोडगंज में जुटी हैं। बता दें कि तिब्बती सरकार का हेडक्वार्टर धर्मशाला है, जो निर्वासन में है।
अपने उत्तराधिकारी की बात को लेकर दलाई लामा का कहना है कि, “मेरे उत्तराधिकारी को चुनने का हक तिब्बती लोगों और गादेन फोड्रंग ट्रस्ट को है, बीजिंग को नहीं।” तो चलिए इस आर्टिकल में जानते है कि आखिर दलाई लामा चुने कैसे जाते हैं ?

मौजूदा दलाई लामा कैसे चुने गए how dalai lama be chosen
चलिए पहले समझते है कि मौजूदा how dalai lama be chosen को कैसे चुना गया? छह जुलाई 1935 को 14वें दलाई लामा यानी (Succession of the 14th Dalai Lama) तेनजिन ग्यात्सो तिब्बत में जन्में। उनका नाम ल्हामो धोंडुप था। तिब्बत के उत्तर पूर्वी इलाके में उनका परिवार खेती करता था। तिब्बती बौद्ध धर्म की माने तो दलाई लामा की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा फिर से जन्म लेती है यानी की उनका पुनर्जन्म होता है। इसी मान्यता को मानते हुए जब 13वें दलाई लामा का निधन हुआ तो एक खोजी दल बनाई गई।

दलाई लामा अपनी मौत से पहले कुछ संकेत देते हैं। खोजी दल को संकेतों और सपनों के आधार पर ल्हामो नाम का एक बच्चा मिला। बच्चा मिलने के बाद परंपरा है कि उसको वस्तुएं दिखाकर पहचान कराई जाती है। ऐसे में बच्चे ने पहले के दलाई लामा की चीजों को पहचाना। उन्होंने कहा, “कि ये मेरा है, ये मेरा है।” ऐसे ही बोद्ध धर्म को उसका 14वां दलाई मिला।
दलाई लामा को सभी पड़ावों को करना होता है पार
नया New dalai lama मिलने के बाद बच्चे को शिक्षा दी जाती है। साथ ही उसकी परीक्षा भी लेते हैं। अगर वो बच्चा परीक्षा में सभी पड़ावों को पार कर लेता है तो नए दलाई लामा की घोषणा की जाती है। बता दें कि महज चार साल की उम्र में साल 1940 में उन्हें आधिकारिक तौर पर दलाई लामा के रूप में स्वीकार किया गया। तिब्बत की राजधानी ल्हासा के पोटाला पैलेम में स्थापित किया गया।

अगले दलाई लामा की खोज dalai lama reincarnation
अब चूंकी बौद्ध धर्म में दलाई लामा चुने जाने की प्रथा सदियों पुरानी है और इस परंपरा के अनुसार दलाई लामा नया रूप धारण करके दोबारा जन्म लेकर अपना पद संभालते हैं। तो अगले दलाई लामा की खोज भी कुछ ऐसी ही होगी।
वर्तमान दलाई लामा का भी यही कहना है कि उनका उत्तराधिकारी पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार ही खोजा जाएगा। उन्होंने अपनी किताब वॉइस फॉर द वॉइसेस में भी इस बात का जिक्र किया है। जिसमें उन्होंने बताया कि चीन के नियंत्रण के बाहर उनका उत्तराधिकारी पैदा होगा। साथ ही बीजिंग की दखल बिना उसका चयन होगा। इस काम के लिए गादेन फोड्रंग ट्रस्ट को चुना गया है। साल 2015 में इस ट्रस्ट को बनाया गया था।

सपनों और संकेतों से होती थी दलाई लामा बनने के योग्य बच्चे की पहचान
पहले के समय में वरिष्ठ भिक्षुओं को कुछ संकेत और सपने आते थे। इन्हीं सपनों और संकेतों से उन्हें एक बच्चे की पहचान करने में मदद मिलती है। जो दलाई लामा बनने के योग्य होता है। बता दें कि 14वीं सदी से ये परंपरा चली आ रही है। अमुमन जब दलाई लामा की मृत्यु हो जाती है तो अगले दलाई की खोज की जाती है।
लेकिन दलाई लामा ने इसके लिए कुछ और भी तरीके बताए हैं। अपने जीवनकाल में ही वो किसी उत्तराधिकारी को उत्पन्न भी कर सकते है। साथ ही इस प्रक्रिया में कोई राजनीतिक दखलंदाजी होती है तो परंपरा को खत्म भी किया जा सकता है।
राजनीतिक दखलंदाजी में परंपरा को खत्म करने का भी नियम
लेकिन पारंपरिक प्रक्रिया में दिक्कत इस बात की है कि आज भी तिब्बतियों की बड़ी आबादी अपने मूल स्थान पर ही है। साथ ही एक बड़ा हिस्सा दलाई लामा के साथ भारत में निर्वासित जीवन जी रहा है और वो भी चीन से दुश्मनी मोल कर। ऐसे में मौजूदा व्यवस्ता को देखते हुए तिब्बत में पारंपरिक प्रक्रिया अपनाना मुश्किल लग रहा है। ये इसलिए भी असंभव है क्योंकि तिब्बत पूरी तरह से चीन के कब्जे में है।
क्या है गोल्डन अर्न मेथड Golden Urn
अगले दलाई लामा के चुने जाने पर चीन का भी अपना ओपिनियन है। वो चाहता है कि स्वर्ण कलश (Golden Urn) से अगले दलाई लामा का चुनाव हो। दरअसल दलाई लामा को चुने जाने का एक तरीका ये भी है।

साल 1793 में किंग राजवंश के समय स्वर्ण कलश से चयन का प्रचलन शुरू हुआ था। इस तरीके में होता ये है कि स्वर्ण कलश में संभावित उत्तराधिकारियों के नाम डाले जाते हैं। शासन के अधिकारियों की निगरानी में एक नाम निकाला जाता है और दलाई लामा चुना जाता है।
चीन के पास है Golden Urn
चूकी स्वर्ण कलश भी चीन के पास है तो इस वजह से वो ये दावा कर रहा है कि इस प्रक्रिया पर उसका ऐतिहासिक और कानूनी अधिकार है। चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, “दलाई लामा के पुनर्जन्म को केंद्र सरकार से मंजूरी मिलनी चाहिए।” तो वहीं तिब्बत के लोगों का मानना है कि ये चीन की राजनीति और दखलंदाजी हैं।
भारत का दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुने जाने में रोल?
बता दें कि भारत में एक लाख से ज्यादा तिब्बती शरणार्थी हैं। साल 1959 से दलाई लामा ने भी भारत में शरण ली हुई हैं। भारत और चीन के रिश्ते कुछ ठीक नहीं है। ऐसे में दलाई लामा की मौजूदगी भारत के लिए कूटनीतिक ताकत है। लेकिन भारत डायरेक्टली दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनने की प्रक्रिया में दखल भी नहीं दे सकता। अगर वो ऐसा करता है तो चीन के साथ उसके द्वपक्षीय रिश्ते और उलझ सकते है। ऐसे में देखना ये है कि क्या ये दलाई लामा तिब्बती परंपरा के अनुसार होगा या फिर चीन अपनी मनमानी करेगा?